जानता है फ़लसफ़ा सारा ज़माना
ज़िंदगी का मौत से नाता पुराना
देख पहले घूम ले सारा ज़माना
घूमने के बाद हमसे दिल लगाना
कौन है वो ख़ालिक़-ए-'आलम है क्या है
क्यूँ जलाएगा हमारा आशियाना
बचपना था वो लड़कपन था गया कट
अब बहुत सस्ता है हँसना मुस्कुराना
फिर किसी को लग न जाए ये भनक सुन
दिल निगाहों ही निगाहों में चुराना
As you were reading Shayari by Prashant Kumar
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