सभी के दिलों में जो घर कर रही हैं - Prashant Kumar

सभी के दिलों में जो घर कर रही हैं
मिरी ज़िंदगी पर गुज़र कर रही हैं

बहकने लगे बिन लगाए शराबी
तुम्हारी निगाहें असर कर रही हैं

वो चिंगारियों को दिखा करके तिनका
मिरे झोपड़े की ख़बर कर रही हैं

परेशान करती हैं ज़ुल्फ़ें तुम्हारी
मुझे रात दिन बे-ख़बर कर रही हैं

कई रानियाँ काख़-ए-उमरा से बे-घर
मिरे झोपड़े में बसर कर रही हैं

शकीला जमीला सब आपस में मिलकर
मिरे बाँकपन की नज़र कर रही हैं

- Prashant Kumar
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