तू आँख मार के अगर इक बार देख ले
तो रौशनी हो जाएगी दिल में ग़रीब के
ये फ़न ये तजरबात सब ऐसे नहीं मिले
दिन रात पाँव दाबे हैं मैंने तिरे मिरे
अहल-ए-वरा है उसको कभी छोड़ना नहीं
मिलते हैं ऐसे लोग बड़े ही नसीब से
अंदाज़ हर किसी का यहाँ एक सा ही है
मुझको हर एक शख़्स उसी की तरह मिले
ये दिल किसी भी हुस्न पे ठहरा नहीं कभी
सज धज के सब गुज़र गए इसके क़रीब से
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