तुम्हारी निगाहों का मारा हुआ है - Prashant Kumar

तुम्हारी निगाहों का मारा हुआ है
मगर फिर भी दिल तुमपे हारा हुआ है

तिजारत में नुक़सान सबका हुआ है
तुम्हारा ही थोड़ी ख़सारा हुआ है

यहाँ ग़म-ज़दा एक तुम ही नहीं हो
मोहब्बत का हर शख़्स मारा हुआ है

उसे लोग बाला-नशीं कह रहे हैं
जो मेरी नज़र से उतारा हुआ है

न रोटी न पानी न घर था न लत्ते
अमीरी में अपना गुज़ारा हुआ है

हो हुस्न-ए-गुलिस्ताँ या हुस्न-ए-बिरिश्ता
मिरे हाथ का ही सँवारा हुआ है

- Prashant Kumar
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