तुमने हमें भी साथ निभाने नहीं दिया
दिल में किसी भी ग़ैर को आने नहीं दिया
हम पर है ज़िंदगी ने किया ज़ुल्म इस क़दर
रोने दिया तो शोर मचाने नहीं दिया
इक बार हमने दर्द को दिल में पनाह दी
और ज़िंदगी से फिर कभी जाने नहीं दिया
दुश्वारियों के ख़ौफ़ से जीने का मन न था
मजबूरियों ने ज़हर भी खाने नहीं दिया
दौलत पे अपनी कल बड़ा इतरा रहे थे जो
कुछ भी ख़ुदा ने साथ में लाने नहीं दिया
ख़ुद अपनी ख़्वाहिशात की पर्वा किए बग़ैर
काँटों को तेरी राह में आने नहीं दिया
आँखें न भूल जाऍं कहीं अपनी हैसियत
सो इनको तेरा ख़्वाब सजाने नहीं दिया
दुनिया में इल्म लोग हैं दो क़िस्म के मगर
ख़ुद को किसी भी क़िस्म में आने नहीं दिया
Read Full