मत पूछिए "भला क्यों रिश्ते सँभालते हैं?"
सहरा में आँसू तक को प्यासे सँभालते हैं
साहब कि ये हवेली है दश्त की ज़मीं पर
साहब हवेली में क्यों पौधे सँभालते हैं
हमने सँभाला अपने अंदर उसे है मानो
मुफ़लिस फटे फिरन में पैसे सँभालते हैं
कंधे शरीफ घर के ये जानते हैं बेहतर
हो भीड़ तो दुपट्टा कैसे सँभालते हैं
बनवा के काँच के घर इतना तो याद रखना
उन घर की इज़्ज़तें फिर पर्दे सँभालते हैं
इक्कीसवीं सदी के आशिक़ बहुत हैं शातिर
करियर सँभालकर फिर वादे सँभालते हैं
था बाप से जुदा और भूला 'अखिल' कि आगे
ये दास्तान ख़ुद के बच्चे सँभालते हैं
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