हर इक लड़की को रस्मों से डराकर मार देते थे
जो करवाचौथ की ही शाम शौहर मार देते थे
न जाने इश्क़ का बिच्छू यूँ कैसे डस गया नस्लें
हम ऐसे लोग थे जो रोज़ अजगर मार देते थे
वो इक लडक़ी जो छत पे रहती थी इक ख़त की ख़्वाहिश में
वो कुछ लड़के मुहल्ले के कबूतर मार देते थे
वो जिस दरिया किनारे बैठे हम तुम उस ही दरिया में
दिखे जो हंस का जोड़ा तो पत्थर मार देते थे
ख़ुद अपना ध्यान रखने की सलाहें बाँटने के बाद
घर आके यक-ब-यक दीवार में सर मार देते थे
तुम्हारे साथ था वो शख़्स सो हम हो गए मद्धम
वगरना ऐसे लड़कों को तो टक्कर मार देते थे
किसी रोटी ने रोकर बद्दुआ में दे दिए काँसे
यही सब शाह दस्तर-ख़्वाँ को ठोकर मार देते थे
फ़साद-ए-दीन में मारा हुआ बच्चा ख़ुदाओं को
बताएगा तुम्हारा नाम लेकर मार देते थे
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