रहे इश्क़ नाकिस तो सब पूछते है
अहल-ए-जहाँ वरना कब पूछते है
तसव्वुर में आते है नक़्क़ाद मेरे
बिछड़ने का मुझसे सबब पूछते है
समंदर मिटाते नहीं प्यास सबकी
हो प्यासा तो पहले तलब पूछते है
कईं बातें पहले शर्म की वजह से
नहीं पूछ पाते थे अब पूछते है
जवाबात कैसे ना आंखों में आते
सवालात यूँ लब से लब पूछते है
बे-पर्दा रहो आंखों पे हाथ रखदो
सितमगर हुस्न-ए-तलब पूछते है
अभी भी है शीरीन क्या लब तुम्हारे
अजी मैं नहीं मेरे लब पूछते है
तिरे बच्चे है बेअदब कितने मौला
तिरे बच्चों से ही नसब पूछते है
मुनासिब नहीं होगी जन्नत भी यारों
सुना है वहाँ सब से सब पूछते है
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