धुआँ धुआँ है ये शहर फिर क्यूँ समझ किसी को न जाने आए - Amit Gautam

धुआँ धुआँ है ये शहर फिर क्यूँ समझ किसी को न जाने आए
मकीं यहाँ के पड़े हैं हैराँ ख़ुदा ही रस्ता दिखाने आए

तमाम जश्नों के वक़्त दुनिया जो साथ रहती लगाए मजमा
दुखों में जब हम हैं तन्हा होते कोई न ढाॅंढस बँधाने आए

पुराने घर की पुरानी छत पर जहाँ पे गुज़रा था अपना बचपन
वहीं पे मीचे जो आँख बैठा तो याद दिन सब पुराने आए

जहाँ पे थी फसलें लहलहाती जहाँ पे धरती को पूजते थे
यक़ीन मानो उसी जगह पर हैं सैकड़ों कारख़ाने आए

पड़े थे फ़ुटपाथ पर जो सोए वो सारे बच्चे जवाँ हैं अब पर
रहे वो बर्बाद उनको कोई न वक़्त रहते जगाने आए

- Amit Gautam
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