क़रीब तो हैं वो जिस्म से पर दिल उनके क्यूँ दूर हो गए हैं
जिन्हें सहेजा कई बरस से वो रिश्ते नासूर हो गए हैं
मैं बोलता हूँ सदा ही सच पर घने अंधेरे में खो गया हूँ
सफ़ेद सा झूट बोलकर भी मगर वो मशहूर हो गए हैं
भले ही चीख़ा किए सड़क पर मगर न कोई किवाड़ खोला
अजब हैं बस्ती के हाल देखो अजब ये दस्तूर हो गए हैं
तुम्हीं से बरकत तुम्हीं से रौनक तुम्हीं से ख़ुशियाँ थीं घर में माँ पर
तुम्हारे बिन अब हर एक दिन रात मेरे बे-नूर हो गए हैं
कहीं पे झूले कहीं पे करतब कहीं पे मेले में थे खिलौने
ये बस तसव्वुर में सोचने को ही हम तो मजबूर हो गए हैं
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