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Diwali Shayari
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Taariikiyo.n ko aag lage aur diyaa jale
Ye raat bain kartii rahe aur diyaa jale
Us kii zabaa.n me.n itnaa asar hai ki nisf shab
Vo raushnii kii baat kare aur diyaa jale
तारीकियों को आग लगे और दिया जले
ये रात बैन करती रहे और दिया जले
उस की ज़बाँ में इतना असर है कि निस्फ़ शब
वो रौशनी की बात करे और दिया जले
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Tehzeeb Hafi
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मिल के होती थी कभी ईद भी दीवाली भी
अब ये हालत है कि डर डर के गले मिलते हैं
Unknown
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Aaj kee raat diwaalee hai diye raushan hain
Aaj kee raat ye lagtaa hai main so sakta hoon
आज की रात दिवाली है दिए रौशन हैं
आज की रात ये लगता है मैं सो सकता हूँ
Azm Shakri
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"दिवाली"
मिरी सांसों को गीत और आत्मा को साज़ देती है
ये दिवाली है सब को जीने का अंदाज़ देती है
हृदय के द्वार पर रह रह के देता है कोई दस्तक
बराबर ज़िंदगी आवाज़ पर आवाज़ देती है
सिमटता है अंधेरा पांव फैलाती है दिवाली
हंसाए जाती है रजनी हँसे जाती है दिवाली
क़तारें देखता हूँ चलते-फिरते माह-पारों की
घटाएँ आँचलों की और बरखा है सितारों की
वो काले काले गेसू सुर्ख़ होंट और फूल से आरिज़
नगर में हर तरफ़ परियाँ टहलती हैं बहारों की
निगाहों का मुक़द्दर आ के चमकाती है दिवाली
पहन कर दीप-माला नाज़ फ़रमाती है दिवाली
उजाले का ज़माना है उजाले की जवानी है
ये हँसती जगमगाती रात सब रातों की रानी है
वही दुनिया है लेकिन हुस्न देखो आज दुनिया का
है जब तक रात बाक़ी कह नहीं सकते कि फ़ानी है
वो जीवन आज की रात आ के बरसाती है दिवाली
पसीना मौत के माथे पे छलकाती है दिवाली
सभी के दीप सुंदर हैं हमारे क्या तुम्हारे क्या
उजाला हर तरफ़ है इस किनारे उस किनारे क्या
गगन की जगमगाहट पड़ गई है आज मद्धम क्यूँ
मुंडेरों और छज्जों पर उतर आए हैं तारे क्या
हज़ारों साल गुज़रे फिर भी जब आती है दिवाली
महल हो चाहे कुटिया सब पे छा जाती है दिवाली
इसी दिन द्रौपदी ने कृष्ण को भाई बनाया था
वचन के देने वाले ने वचन अपना निभाया था
जनम दिन लक्ष्मी का है भला इस दिन का क्या कहना
यही वो दिन है जिस ने राम को राजा बनाया था
कई इतिहास को एक साथ दोहराती है दिवाली
मोहब्बत पर विजय के फूल बरसाती है दिवाली
गले में हार फूलों का चरण में दीप-मालाएँ
मुकुट सर पर है मुख पर ज़िंदगी की रूप-रेखाएँ
लिए हैं कर में मंगल-घट न क्यूँ घट घट पे छा जाएँ
अगर परतव पड़े मुर्दा-दिलों पर वो भी जी जाएँ
अजब अंदाज़ से रह रह के मस़्काती है दिवाली
मोहब्बत की लहर नस नस में दौड़ाती है दिवाली
तुम्हारा हूँ तुम अपनी बात मुझ से क्यूँ छुपाते हो
मुझे मालूम है जिस के लिए चक्कर लगाते हो
बनारस के हो तुम को चाहिए त्यौहार घर करना
बुतों को छोड़ कर तुम क्यूँ इलाहाबाद जाते हो
न जाओ ऐसे में बाहर 'नज़ीर' आती है दिवाली
ये काशी है यहीं तो रंग दिखलाती है दिवाली
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Nazeer Banarasi
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हर इक मकाँ में जला फिर दिया दिवाली का
हर इक तरफ़ को उजाला हुआ दिवाली का
Nazeer Akbarabadi
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था इंतिज़ार मनाएँगे मिल के दीवाली
न तुम ही लौट के आए न वक़्त-ए-शाम हुआ
Aanis Moin
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राहों में जान घर में चराग़ों से शान है
दीपावली से आज ज़मीन आसमान है
Obaid Azam Azmi
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जो बुजुर्गों की दुआओं के दीयों से रौशन
रोज़ उस घर में दीवाली का जश्न होता है
Pratap Somvanshi
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शाम से छत पर घुम रहा हूँ
एक दिये के आगे-पीछे
Shariq Kaifi
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पिता के माथे आया बस शिकन का दुख
किसी मुफ़्लिस से पूछो पैरहन का दुख
सभी ने राम का ही कष्ट देखा बस
था दशरथ की भी आँखों में वचन का दुख
फ़क़त दिलबर के जिस्मों तक ही सीमित है
न जाने क्यों सुख़न-वर के सुख़न का दुख
मोहब्बत में कलाई काटने वाले
समझते ही नहीं अक्सर बहन का दुख
बिना मर्ज़ी किसी से ब्याह दी जाए
वही लड़की बताएगी छुअन का दुख
गले भी लग न पाए वस्ल में उसके
भला अब और क्या होगा बदन का दुख
यहाँ हर शख़्स ख़ूँ का प्यासा लगता है
यक़ीनन मज़हबी घिन है वतन का दुख
मुझे फुटपाथ का मंज़र बताता है
कि मज़दूरों ने चक्खा है थकन का दुख
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Harsh saxena
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मैं चाहता हूँ इक मुसलमां दोस्त हो मेरा
मेरे मकाँ में ईद हो उसके दिवाली हो
Siddharth Saaz
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हर गीत में हर बार गाऊँगा तुझे
अपनी ग़ज़ल में गुनगुनाऊँगा तुझे
तू ईद है और तू ही दीवाली मेरी
मैं हर बरस यूँही मनाऊँगा तुझे
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Krishnakant Kabk
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मेहनत तो करता हूँ फिर भी घर खाली है बाबूजी
मिट्टी के कुछ दीपक ले लो दीवाली है बाबूजी
मिट्टी बेच रहा हूँ जिसमें कोई जाल फरेब नहीं
सोना. चाँदी, दूध, मिठाई सब जाली है बाबूजी
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Gyan Prakash Akul
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दिवाली भी दिवाली अब नहीं है
तुम्हारे साथ हर दिन थी दिवाली
Tanoj Dadhich
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वो दिन भी हाए क्या दिन थे जब अपना भी तअल्लुक़ था
दशहरे से दिवाली से बसंतों से बहारों से
Kaif Bhopali
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