बैठे बैठे उफ़ ये आफ़त हो गई
एक दिन हमको मुहब्बत हो गई
हम समझते थे जिसे आफ़त तमाम
अब हमें उसकी ही आदत हो गई
सुब्ह की पहली किरण के साथ में
देखने की उनको हसरत हो गई
अब चलो इतनी तो राहत हो गई
चूमने की अब इजाज़त हो गई
देखते ही देखते हम लुट गए
हमको भारी ये शराफ़त हो गई
जो इमारत ढह गई थी इश्क़ की
उस इमारत की मरम्मत हो गई
मय लगाकर होंठ से वो बोलते
अब हमारी तो इबादत हो गई
रात भर पलकें उठीं पलकें गिरीं
आँखों आँखों में शरारत हो गई
हम क़यामत पर न उनसे मिल सके
हाए ये कैसी क़यामत हो गई
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