जगमगाती रात दिल वीरान सा है - Amit Gautam

जगमगाती रात दिल वीरान सा है
दर्द भीतर तक मेरे क्यूँ आ बसा है

इश्क़ की वहशत तो कब की छोड़ आए
मन में छाया अब भी क्यूँ उन्माद सा है

खा गई वो यार लड़की सारे आशिक़
मेरा बचना तो मियाँ अपवाद सा है

आँख टकराए उठे तूफ़ान दिल में
इश्क़ है कम-बख़्त या फिर हादसा है

चार रोटी एक छत और चंद कपड़े
यार मेरी बस ये ही तो लालसा है

जैसे ख़ालिस आब-ए-कौसर उस जहाँ में
इश्क़ अपना इस जहाँ में पाक सा है

- Amit Gautam
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