वक़्त ने ज़ख़्म तो भर दिया है मगर
अध मरा सा मुझे कर दिया है मगर
छोड़ कर तो गए इश्क़ का तुम सफ़र
बोझ सा सर मेरे धर दिया है मगर
बस गए हैं नगर काट जंगल सभी
जानवर को भी क्या घर दिया है मगर
लाख रहजन मिले हैं डगर में तो क्या
राह में एक रहबर दिया है मगर
बिन किसी आस के कर्म मैंने किए
उसने झोली में सब भर दिया है मगर
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