कोई आवाज़ न आए तो सुनाया जाए
ख़ुद से ख़ुद को भी कभी जा के मिलाया जाए
भीड़ में जब भी कोई शख़्स अकेला दिखे तो
हाथ थामे उसे चुपचाप बुलाया जाए
काँच जैसी है ये उम्मीद भी टूटे न कहीं
ख़्वाब आँखों में हैं पलकों में छुपाया जाए
धूप में जलते हुए देखे हैं रिश्ते हमने
अब कोई पेड़ भी छाँव का लगाया जाए
क़ैद में हैं कई जज़्बात कई सन्नाटे
दर-ओ-दीवार को थोड़ा तो हिलाया जाए
हर नया ज़ख़्म भी इक ताज़ा ग़ज़ल कहता है
किसी पत्थर को भी इक दर्द सुनाया जाए
जो भी आया है यहाँ दर्द का सौदा करके
दिल में इक और मुसाफ़िर को बसाया जाए
हम को ये फ़िक्र नहीं कौन हमारा क्या है
हर किसी शख़्स को बस प्यार कराया जाए
ये ज़माना है कि जो झूठ में रंगे हैं सभी
अपने चेहरे को ही आईना बनाया जाए
ख़्वाब बेचैन हैं आँखों को भी डर लगता है
आज फिर नींद से समझौता कराया जाए
धूप में जलते ये जिस्मों की चिताओं से परे
एक चूल्हे को भी इक ख़्वाब बताया जाए
जिसको माना था ख़ुदा अब वही पत्थर निकला
अब किसी मोम की मूरत को सजाया जाए
आइए आज कोई काम मोहब्बत वाला
टूटे बच्चों के खिलौनों को हँसाया जाए
अब ये दुनिया न रहे तो किसे ग़म है फिर देव
इक मोहब्बत को तो महसूस कराया जाए
आख़िरी शेर है पढ़ लो तो दुआ देना मुझे
किसी बच्चे को भी अब साथ खिलाया जाए
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