फिर दो दिलों में अहद को ले कर लड़ाई हो गई
फिर बैठे-बैठे हिज्र की अच्छी कमाई हो गई
हम बे-ख़ुदी में रात भर किस सेज पर सोए रहें
हमको गिला है हमसे शायद बे-वफ़ाई हो गई
इक हम थे जो मंडप से अपनी उठ गए थे बीच में
और उसने सीधा कह दिया अब तो सगाई हो गई
इस इश्क़ के शतरंज में राजा भी मैं रानी भी मैं
फिर हुस्न की सीरत से आज इस पर लड़ाई हो गई
जिसको ख़ुदा से माँगने में उम्र सारी कट गई
वो ख़ुश-बदन पल भर में ही हमसे पराई हो गई
हम चूड़ियाँ लाने गए थे शहर से उसके लिए
वापस जब आए तो सुना उसकी विदाई हो गई
कमरा मेरा कुछ देर पहले था बहुत बिखरा हुआ
कुछ फूल फेंके ख़त जलाएँ और सफ़ाई हो गई
रेहान उसने हाथ रक्खा कल मेरे सीने पे तो
ऐसा लगा पिंजरे से पंछी की रिहाई हो गई
As you were reading Shayari by Rehaan
our suggestion based on Rehaan
As you were reading undefined Shayari