0

शायरी का गर्म सारे मुल्क में बाज़ार है - Asrar Jaamayee

शायरी का गर्म सारे मुल्क में बाज़ार है
जिस को देखो वो क़लम काग़ज़ लिए तैयार है
तेज़ बेकारी की जितनी आज कल रफ़्तार है
बस उसी दर्जा फ़ुज़ूँ ग़ज़लों की पैदा-वार है
हर गली कूचे में है शेअरी नशिश्तों की दुकां
ज़ेहन को बीमार रखने का ये कारोबार है

मुब्तदी उस्ताद तक बंद ओ अताई जो भी है
शेर-साज़ी के जुनूँ में मस्त है सरशार है
एक प्याली चाय रख कर दोस्तों के दरमियाँ
बे-तुकी बहसें हैं घंटों बे-सबब तकरार है
जो भी शायर है उसे देखो तो हफ़्तों क़ब्ल से
बस रदीफ़ ओ क़ाफ़िया से बर-सर-ए-पैकार है

क़ाफ़िए जितने लुग़त में मिल सके सब चुन लिए
इन को मिसरों में खपाया और ग़ज़ल तयार है
मौलवी हाली हूँ या मिस्टर कलीमुद्दीन हूँ
उन की नज़रों में ग़ज़ल बे-रब्तई-ए-अफ़्कार है
फिर भी अन-पढ़ लोग हों या हों अदब के डॉक्टर
जाने क्यूँ उस शोख़ चंचल से सभी को प्यार है

दौर-ए-नौ का हो सुख़न-वर या पुरानी नस्ल का
जिस को देखो महफ़िलों में बस उस का यार है
इक अदा-ए-ख़ास से अकड़े हुए बैठेंगे सब
जो भी शायर है ब-ज़ोम-ए-ख़ुद बड़ा फ़नकार है
शेर सुनने से ज़ियादा ख़ुद सुनाने के लिए
नफ़्ख़ की हालत में हैं बेताबी-ए-इज़हार है
बाँस पर चढ़ना उतरना जिस तरह का काम है
ये ग़ज़ल-पैमाई भी वैसा ही शग़्ल 'असरार' है

- Asrar Jaamayee

Tanz Shayari

Our suggestion based on your choice

Similar Writers

our suggestion based on Asrar Jaamayee

Similar Moods

As you were reading Tanz Shayari