मोहब्बत में जो डूबा मैं तो दिल तुझको पुकारा है
मेरी टूटी हुई कश्ती का तू ही तो सहारा है
रखा ख़ुद को यूँ शीशे सा कि इबरत ले सभी मुझसे
किसी और पे न गुज़रे वो जो भी मैंने गुज़ारा है
लब उसके हैं गुलाबों से फिर उस पर ये खुली जुल्फ़ें
ये उम्र अपनी बिताने को हाँ काफ़ी ये नज़ारा है
मर अब जाए कहीं जा कर करे किससे शिक़ायत हम
ये ज़ाहिल ये सितमगर भी तो आख़िर को हमारा है
जो तन्हाई के तोहफ़े हैं सब उसकी ही बदौलत हैं
किताबों का जो पर्वत है ये जो टूटा सितारा है
लगाया पहले सीने से कहा घबरा कर उसने फिर
मुझे रुसवा न कर देना यूँ तो सब कुछ गवारा है
अजब मेरी मुहब्बत है अजब मेरी ये क़िस्मत है
मिले जिससे भँवर मुझको वही मेरा किनारा है
इक ऐसा भी सफ़ीना था जो ग़र्क़ाब-ए-समंदर था
इक ऐसा भी समंदर है सफ़ीने से उतारा है
तेरे तफ़्सीले पैकर में क़सीदे हैं कसे मैंने
वरक़ तेरे बदन का ये इन आँखों का सिपारा है
जिसे सबसे छुपाया है जो इस ग़म का मकीं भी है
वही है जान सय्यद की वही तो सबसे प्यारा है
Read Full