तू मिला जो नहीं चाँदनी रात में
हो गया दिल हज़ीं चाँदनी रात में
ढ़ूँढते-ढ़ूँढते तुझ को मेरे सनम
खो गया मैं कहीं चाँदनी रात में
बात करती है तो, बात करती है क्या ?
आसमाँ से ज़मीं चाँदनी रात में
हम अमावस की शब जिस जगह थे मिले
आ गये हम वहीं चाँदनी रात में
आरज़ू है यही अब कि ‘जस्सर’, रहे
चाँद पहलूनशीं चाँदनी रात में
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