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ज़िंदगी यूँ भी गुज़ारी जा रही है - Azm Shakri

ज़िंदगी यूँ भी गुज़ारी जा रही है
जैसे कोई जंग हारी जा रही है

जिस जगह पहले के ज़ख़्मों के निशाँ में
फिर वहीं पर चोट मारी जा रही है

वक़्त-ए-रुख़्सत आब-दीदा आप क्यूँ हैं
जिस्म से तो जाँ हमारी जा रही है

बोल कर तारीफ़ में कुछ लफ़्ज़ उस की
शख़्सियत अपनी निखारी जा रही है

धूप के दस्ताने हाथों में पहन कर
बर्फ़ की चादर उतारी जा रही है

- Azm Shakri

Zindagi Shayari

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