ज़माने को रुलाते फिर रहे हैं
सुख़नवर ग़म उठाते फिर रहे हैं
ये शाइर लेके सब आसान बातें
उन्हें मुश्क़िल बनाते फिर रहे हैं
जो कहते हैं ख़ुदा है आख़िरी सच
हमें जन्नत दिखाते फिर रहे हैं
नहीं लगता कहीं भी दिल हमारा
सभी को आज़माते फिर रहे हैं
ग़म आया शक़्ल लेकर आज तेरी
सो ग़म में मुस्कुराते फिर रहे हैं
जो औरों को सहारा दे रहे थे
वो अब ख़ुद लड़खड़ाते फिर रहे हैं
कोई तो बात सूरज में भी होगी
जो ग्रह चक्कर लगाते फिर रहे हैं
मुहब्बत 'जौन' जैसी हो गई है
यक़ीं सबको दिलाते फिर रहे हैं
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