उधर देखो वो तन्हा आ रहा है
इधर तुमको पसीना आ रहा है
मिरे शेरों रखो तलवार नीचे
वो देखो वो निहत्था आ रहा है
वो जिसने छीन कर मारा था कासा
वही लेकर के कासा आ रहा है
मुझी से की है उस लड़की ने शादी
मुझे कैसा ये सपना आ रहा है
जो इक ग़लती हुई है बस उसी पे
हमें हर रोज़ रोना आ रहा है
तो अब चलता हूँ मैं बहर-ए-फ़ना में
मिरी जानिब फ़रिश्ता आ रहा है
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