ग़मों के पास जा कर बैठे हैं हम
ख़ुशी से लड़ लड़ाकर बैठे हैं हम
सज़ाओं पर सज़ाएँ मिल रही हैं,
न जाने क्या ख़ता कर बैठे हैं हम
किसी को फ़ायदा हो इसलिए बस,
बहुत नुक़सान खा कर बैठे हैं हम
कुछ इंसानों को ख़ुश करने की ख़ातिर,
ख़ुदा को ही ख़फ़ा कर बैठे हैं हम
मेरे अश्कों अभी थम जाओ कुछ पल,
अभी तो मुस्कुरा कर बैठे हैं हम
कोई देखे धुआँ, आए बचाने,
यहाँ हुक्का जला कर बैठे हैं हम
किराया माँगता है वो हरम का,
जिसे दिल में बसा कर बैठे हैं हम
ज़रा सा प्रेम पाने के लिए बस,
अना अपनी गँवा कर बैठे हैं हम
वो माथा देखकर लौटे हैं वापस,
मकाँ अंदर सजा कर बैठे हैं हम
ये महफ़िल "सोम" ही लूटेगा साहब,
सरे महफ़िल बता कर बैठे हैं हम
Read Full