दिल - लगी से मैंने उसका दिल लगाकर
रो रही थी फिर मुहब्बत मुँह छिपाकर
कैसे कैसे लोग शामिल बज़्म में हैं
और वो फिर चल रहा है सर उठाकर
मर्ज़ की इसके दवा कोई नहीं है
देखे मैंने सारे चारागर बुलाकर
पहले अपने दिल को खोदा होगा उसने
फिर बनाई भीत रब का घर बताकर
As you were reading Shayari by Hrishita Singh
our suggestion based on Hrishita Singh
As you were reading undefined Shayari