दिल - लगी से मैंने उसका दिल लगाकर

  - Hrishita Singh

दिल - लगी से मैंने उसका दिल लगाकर
रो रही थी फिर मुहब्बत मुँह छिपाकर

कैसे कैसे लोग शामिल बज़्म में हैं
और वो फिर चल रहा है सर उठाकर

मर्ज़ की इसके दवा कोई नहीं है
देखे मैंने सारे चारागर बुलाकर

पहले अपने दिल को खोदा होगा उसने
फिर बनाई भीत रब का घर बताकर

  - Hrishita Singh

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