कुछ वक़्त है मेरा बुरा कुछ हैं सितम संसार के
मैं जी रहा हूँ ज़िंदगी बस इसलिए मन मार के
हर चीज़ पा लेने का मुझमें आज भी है दम मगर
इक ख़्वाब के चक्कर में मैं बैठा हूँ सब कुछ हार के
सूरज निकल के देख मेरे यार को तू इक दफ़ा
तुझसे भी ज़्यादा तेज है चेहरे में मेरे यार के
मुझको नहीं मालूम डर किस बात का है इसलिए
लड़की मुझे तू मान ले अपना बिना इज़हार के
माना कि दौलत चीज़ है सबसे बड़ी यारो मगर
कुछ लोग हैं दुनिया में भूखे आज भी बस प्यार के
आँखों से अपनी देख लो पूरी तरह वीरान है
ये हाल होता है क़बीले का बिना सरदार के
अब टूटना मंज़ूर है पर लौटना मुमकिन नहीं
'सागर' नहीं है मर्द वो जो लौट जाए हार के
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