हुस्न की जो मल्लिका है
नाम उसका बे-वफ़ा है
देख लो तुम हाल मेरा
ये मुहब्बत में हुआ है
मैं किसी का था दिवाना
ये पुराना हादिसा है
दोस्त मेरा था कभी जो
आज वो दुश्मन मिरा है
है नुमाइश में नहीं वो
सादगी में जो मज़ा है
तुम नहीं हो अब किसी के
फ़ैसला ये हो चुका है
तुम मिरी हो कर रहोगी
ये इलाही ने कहा है
हुस्न की तू बात मत कर
हुस्न की फ़ितरत दग़ा है
इश्क़ में बर्बाद से तुम
पूछते हो इश्क़ क्या है
जब तुझे देखा किसी ने
तब मिरा ये दिल जला है
ग़ैर ने उस को छुआ है
आज 'सागर' ग़म-ज़दा है
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