धूम गुम-गश्ता ख़ज़ानों की मचाता फिरे कौन
इन ज़मानों में जो थे ही नहीं जाता फिरे कौन
बाग़ में उन से मुलाक़ात का इम्कान भी है
सिर्फ़ फूलों के लिए लौट के आता फिरे कौन
सीख रक्खे हैं परिंदों ने सब अश्जार के गीत
आज-कल मूड ही ऐसा है कि गाता फिरे कौन
मैं तो कहता हूँ यहीं ग़ार में रह लो जब तक
वक़्त पूछो ही नहीं शहर बसाता फिरे कौन
भेस बदले हुए इक शख़्स की ख़ातिर है ये सब
हम फ़क़ीरों के भला नाज़ उठाता फिरे कौन
ख़्वाब या'नी ये शब-ओ-रोज़ जिसे चाहिए हों
आ के ले जाए अब आवाज़ लगाता फिरे कौन
इख़्तिलाफ़ात सरों में हैं घरों से बढ़ कर
फिर उठानी जो है दीवार गिराता फिरे कौन
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