दिल गया रौनक़-ए-हयात गई
ग़म गया सारी कायनात गई
दिल धड़कते ही फिर गई वो नज़र
लब तक आई न थी कि बात गई
दिन का क्या ज़िक्र तीरा-बख़्तों में
एक रात आई एक रात गई
तेरी बातों से आज तो वाइज़
वो जो थी ख़्वाहिश-ए-नजात गई
उन के बहलाए भी न बहला दिल
राएगांसई-ए-इल्तिफ़ात गई
मर्ग-ए-आशिक़ तो कुछ नहीं लेकिन
इक मसीहा-नफ़स की बात गई
अब जुनूंआप है गरेबां-गीर
अब वो रस्म-ए-तकल्लुफ़ात गई
तर्क-ए-उल्फ़त बहुत बजा नासेह
लेकिन उस तक अगर ये बात गई
हांमज़े लूट ले जवानी के
फिर न आएगी ये जो रात गई
हांये सरशारियाजवानी की
आंख झपकी ही थी कि रात गई
नहीं मिलता मिज़ाज-ए-दिल हम से
ग़ालिबन दूर तक ये बात गई
क़ैद-ए-हस्ती से कब नजात 'जिगर'
मौत आई अगर हयात गई
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