मता-ए-ज़िंदगी मेरी फ़क़त क़िस्सा-कहानी है
वगरना ग़म भी जानाना बला-ए-आसमानी है
लगा दो इश्तिहारों को दर-ओ-दीवार पर लेकिन
लिखोगे क्या भला उसमें मिरी लंबी कहानी है
वो तब नादान थी कैसे मैं कहता यक-ब-यक कुछ भी
तकल्लुफ़-बरतरफ़ कहता वो लड़की अब सयानी है
इसी उलझन में रहते हैं नई नस्लों के ये लड़के
पिलाई थी कल उसने मुझको अब मुझको पिलानी है
मियॉं अब तक मुहब्बत से तो वाक़िफ हो गए होगे
सुना है ये मुहब्बत तो बला-ए-ना-गहानी है
उस इज़हार-ए-मुहब्बत से इस इज़हार-ए-मसर्रत तक
मिरी हालत मिरी वहशत मिरी ही तर्जुमानी है
मिरी हुस्न-ए-दिल-ए-आरा तिरे हुस्न-ए-गुलिस्तॉं में
कटे ये ज़िंदगी अपनी यही ख़्वाब-ए-जवानी है
न गुज़रे ज़िंदगी या-रब किसी की 'जून' की मानिंद
अज़िय्यत-नाक ही गुज़री जो गुज़री ज़िंदगानी है
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