उसकी शिकायती नज़र मेरा वबाल इश्क़ है
मेरी हर इक नज़र कहे तेरा विसाल इश्क़ है
जब हुस्न पुर-असर सजे तब इश्क़ तर-ब-तर उठे
फिर क्या इलाम इश्क़ से कैसा मलाल इश्क़ है
ज़ेहनी हवस कफ़स बने दीवानगी की हद परे
इल्हाम सारे भूल कर कहना हलाल इश्क़ है
कुछ हाल चाल पूछता फिर कुछ सवाल और जवाब
हर ना-समझ यही कहे साहब कमाल इश्क़ है
कितना नमक हलाल है ख़ुश है तबाह हाल में
कहते हैं अब यहाँ सभी 'माही' बवाल इश्क़ है
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