वही-ए-इश्क़ हिसारों का हाल क्या होगा
बिन आज़माए दयारों का हाल क्या होगा
निकल भी आ कि तिरे आश्ना नहीं हैं पर
तिरे वहीद फ़िगारों का हाल क्या होगा
जो बाँध घुँघरू मैं उतरूँ ज़मीन पर तो कहो
शब-ए-सियाह शरारों का हाल क्या होगा
हवा ने छू ही लिया उसका ख़ूब-रू आँचल
किसे ख़बर है कि धारों का हाल क्या होगा
दिवाने साथ हैं बैठे मुशाइरे में आज
पढ़े लिखों में गँवारों का हाल क्या होगा
रक़ीब मैं जो कभी बन गया तिरा 'साहिर'
तिरे हबीब शुमारों का हाल क्या होगा
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