और तो कहता ही क्या मैं इतनी ख़ामोशी के बाद - Karan Sahar

और तो कहता ही क्या मैं इतनी ख़ामोशी के बाद
उठ गया चुपचाप आख़िर उनकी रुसवाई के बाद

आईने की गर्द में उभरा है जो उस अक़्स का
सामना कैसे करूँगा इतनी तन्हाई के बाद

बाप से आँखें चुराना माँ से नज़रें झेंपना
पूछ मत क्या कुछ नहीं करता हूँ बेकारी के बाद

इश्क़ ऐसा रोग है जिसकी दवा कुछ भी नहीं
मौत भी कब पुर-असर है ऐसी बीमारी के बाद

स्याह शब हमने गुज़ारी सुबह की उम्मीद में
वस्ल की सूरत बने कुछ हिज्र की बारी के बाद

उसने जब बेघर किया तो हमने अपनी राह ली
लोग तो उठते न होंगे ऐसी नाकामी के बाद

दिन उन्हीं क़िस्सों को बुनने में बिता देता हूँ मैं
रात भर तुमको सुनाता हूँ जो मयनोशी के बाद

ज़ेहन को क़ाबू में रखना भी ज़रूरी है सहर
घर भी घर बनता है दीवारों की पाबंदी के बाद

- Karan Sahar
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