और तो कहता ही क्या मैं इतनी ख़ामोशी के बाद
उठ गया चुपचाप आख़िर उनकी रुसवाई के बाद
आईने की गर्द में उभरा है जो उस अक़्स का
सामना कैसे करूँगा इतनी तन्हाई के बाद
बाप से आँखें चुराना माँ से नज़रें झेंपना
पूछ मत क्या कुछ नहीं करता हूँ बेकारी के बाद
इश्क़ ऐसा रोग है जिसकी दवा कुछ भी नहीं
मौत भी कब पुर-असर है ऐसी बीमारी के बाद
स्याह शब हमने गुज़ारी सुबह की उम्मीद में
वस्ल की सूरत बने कुछ हिज्र की बारी के बाद
उसने जब बेघर किया तो हमने अपनी राह ली
लोग तो उठते न होंगे ऐसी नाकामी के बाद
दिन उन्हीं क़िस्सों को बुनने में बिता देता हूँ मैं
रात भर तुमको सुनाता हूँ जो मयनोशी के बाद
ज़ेहन को क़ाबू में रखना भी ज़रूरी है सहर
घर भी घर बनता है दीवारों की पाबंदी के बाद
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