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हाथ तूने जब लगाए रंग में - Krishnakant Kabk

हाथ तूने जब लगाए रंग में
छा गया है शह'र तेरे रंग में

जाँ लुटाते लोग तेरे रंग पर
क्या रखा है इस लुटेरे रंग में

और सोने पे सुहागा कुछ नहीं
बस तुझे देखूँ सुनहरे रंग में

तू मुझे जब से मिली ऐसा लगा
मिल गया इक रंग मेरे रंग में

ज़िंदगी बेरंग थी पहले मेरी
मैं भी रंगा धीरे धीरे रंग में

याद करके ही तुझे मैं सो गया
ख़ुद को पाया फिर सवेरे रंग में

- Krishnakant Kabk

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