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कुछ नहीं हो सका पैसे से दाना बन - Krishnakant Kabk

कुछ नहीं हो सका पैसे से दाना बन
रोज़ कीमत बढ़ा ख़ुद की ख़ुद पैसा बन

दाम कम ही मिलेगा रहा गर उदास
थोड़ा और मुस्कुरा थोड़ा और महंगा बन

बादलों ने खुला छोड़ कर बूंद को
कह दिया झील बन दरिया बन सहरा बन

पूरा पागल हो जाएगा तू ख़ुद-ब-ख़ुद
तुझको पागल ही बनना है तो आधा बन

मतलबी दुनिया में इश्क़ करना है तो
दिल की हर बात सुन और फिर बहरा बन

- Krishnakant Kabk

Udas Shayari

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