कब कहा मैंने अदब की तर्बियत अच्छी नहीं है
हाँ मगर हम शायरों की कैफ़ियत अच्छी नहीं है
चाहता है जो मुझे मैं भी उसे अपना बनाता
पर मुहब्बत में मेरी मसरूफ़ियत अच्छी नहीं है
वो दिलों को तोड़ता फिर जोड़ता फिर तोड़ देता
उसको समझाओ कि ये मासूमियत अच्छी नहीं है
गाँव अपना छोड़कर रहने लगे परदेस लेकिन
भूल जाऐं राह तो फिर शहरियत अच्छी नहीं है
यार शहर-ए-दिल मेरा वीरान करके जो गया था
है सुना उस शख़्स की भी ख़ैरियत अच्छी नहीं है
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