पर्दा है क्यों इतना रुख़-ए-महताब पर - Ankur Mishra

पर्दा है क्यों इतना रुख़-ए-महताब पर
पहरा है क्यों इतना सनम इस ख़्वाब पर

अब तो मिरा भी हाल तुम सा ही है फिर
हैराँ हो क्यों अब गौहर-ए-बे-आब पर

इक उम्र लगती है उसे पाने में जो
है छोड़ कर बैठा यक़ीं ही ख़्वाब पर

जाने उसे किसने कहा है बेवफ़ा
किसने चलाई नाव ये सैलाब पर

माना हैं तोड़े दिल कई 'अंकुर' मगर
फिर भी यक़ीं है मुझको उस अहबाब पर

- Ankur Mishra
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