अच्छी से अच्छी आब-ओ-हवा के बग़ैर भी
ज़िंदा हैं कितने लोग दवा के बग़ैर भी
साँसों का कारोबार बदन की ज़रूरतें
सब कुछ तो चल रहा है दुआ के बग़ैर भी
बरसों से इस मकान में रहते हैं चंद लोग
इक दूसरे के साथ वफ़ा के बग़ैर भी
अब ज़िंदगी का कोई भरोसा नहीं रहा
मरने लगे हैं लोग क़ज़ा के बग़ैर भी
हम बे-क़ुसूर लोग भी दिलचस्प लोग हैं
शर्मिंदा हो रहे हैं ख़ता के बग़ैर भी
चारागरी बताए अगर कुछ इलाज है
दिल टूटने लगे हैं सदा के बग़ैर भी
Our suggestion based on your choice
As you were reading Shayari by Munawwar Rana
our suggestion based on Munawwar Rana
As you were reading Dil Shayari