इक तो मौसम सर्द है और फिर गले में दर्द है
और फिर ऊपर से मेरा तन-बदन भी ज़र्द है
आँखें पीली पड़ गई हैं रात भर जगते हुए
रो नहीं सकता हूँ मेरी ज़िंदगी पुर-दर्द है
फूट के रोता नहीं है देखकर वीरानियाँ
क्या कहूँ ये दिल मेरा है या कोई नामर्द है
घर में घुसता हूँ तो लगता है कि रेगिस्तान है
मेरे इक कमरे में सारे शहर भर की गर्द है
ऐसे कुछ तोहफ़े मिले मेरी मुहब्बत में मुझे
दर्द अपने दे गया है मेरा जो हमदर्द है
मर चुका हूँ मैं मुहब्बत को मनाने में कभी
सोच लो साजन मेरा ये किस क़दर बे-दर्द है
दो घड़ी बातें करो तो नोंचकर खा जाएगा
आदमी लगता नहीं लगता है ये सरदर्द है
पूछना भी क्या मुझे है ज़िंदगी में क्या नया
और क्या है ज़िंदगी में तू है तेरा दर्द है
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