क्या क्या गुमाँ न थे हमें दीवार-ओ-दर के बीच
ऊँचाइयों पे जा के ख़लाओं से डर गए
मजमे' में कर रहे थे जो बे-ख़ौफ़ियों की बात
तन्हा हुए तो अपनी सदाओं से डर गए
As you were reading Shayari by Nashir Naqvi
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