तुम जो गए तो क़ल्ब की राहत चली गई

  - Nazir Zaidi

तुम जो गए तो क़ल्ब की राहत चली गई
बाद इसके फिर हयात की ज़ीनत चली गई

देने लगा फ़रेब सभी को वो शान से
यानी के उसकी आँख से ग़ैरत चली गई

इस कश्मकश में घर से निकलते नहीं हैं हम
कुछ कर गुज़रने वाली जो हिम्मत चली गई

उनको अब इस नगर में कोई पूछता नहीं
उनकी वो शान और वो शौक़त चली गई

तुम जो क़रीब आए तो नुक़सान ये हुआ
थी पास मेरे हिज्र की दौलत चली गई

उसने तो तर्क कर दिया हुस्न-ओ-शराब को
उसकी तो गुल खिलाने की आदत चली गई

'नाज़िर' मेरी हयात से बस वो नहीं गया
साथ उसके इस हयात की लज़्ज़त चली गई

  - Nazir Zaidi

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