इसलिए भी उदास बैठे हैं
हादसे आस-पास बैठे हैं
हम तो सुनने को हास आए थे
मसख़रे महवे-यास बैठे हैं
एक वो है कि देखता भी नहीं
कब से क़दमों में दास बैठे हैं
आम लोगों को कौन समझाए
ख़ास ओहदों पे ख़ास बैठे हैं
हमने मेयार ऊँचा रक्खा है
सो जबर ख़ुद के पास बैठे हैं
As you were reading Shayari by Rohan Kaushik
our suggestion based on Rohan Kaushik
As you were reading undefined Shayari