सूरज ऐसा उगा के अँधेरा हुआ
चाँद कहने लगा अब के अच्छा हुआ
अपनी ही मस्ती में मस्त उड़ता हुआ
कितना लम्बा लगूंगा मैं लटका हुआ
चाँद से क़ल्ब में खलबली मच गई
ख़ुश्क पत्ता जो गुज़रा घिसटता हुआ
लीजिए पूजिये अब से इस शक्ल को
पेश है एक चेहरा मिटाया हुआ
सैकड़ों बार इसके मुताबिक़ चला
तब कहीं जाके ये रस्ता सीधा हुआ
शाख़ से बेल लिपटी रही रात भर
अब मैं क्या क्या बताऊँ के क्या क्या हुआ
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