आप जब कभी ये ख़ाली आसमान देखना
उड़ने वाले पंछियों की तब उड़ान देखना
आप चाहों तो दरख़्त काट लेना बाद में
घर बनाते हैं ये कैसे बे-ज़बान देखना
बाबू जी ने अपनी उम्र कमरे में गुज़ार दी
माँ ही चाहती थी अपना इक मकान देखना
बेटियों की शादी करना धूमधाम से मगर
बेटों के लिए भी अच्छा ख़ानदान देखना
As you were reading Shayari by Sagar Sahab Badayuni
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