दिल नहीं चाहता ये वक़्त गुज़र जाने का
उसके पहलू में रहें और ठहर जाने का
उसने आँखों से इशारा तो किया है लेकिन
रस्ता अब ढूँढना है दिल में उतर जाने का
उसने बस हाथ ही तो पकड़ा था डरना कैसा
ख़ैर ये वक़्त नहीं था अभी डर जाने का
साँस फिर तेज़ बहुत तेज़ मिरी चलती है
मुझको पहले न बताया करो घर जाने का
तुम से मिलने की ये उम्मीद मुझे ले आई
मैं चला जाऊँगा कह दोगी अगर जाने का
हमको दुनिया को सिखाना था मुहब्बत करना
ये सही वक़्त नहीं था अभी मर जाने का
As you were reading Shayari by Sagar Sahab Badayuni
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