सोचूँ अगर मैं ख़ुद को तो कोई सिफ़त नहीं - Sanyam Bhatia

सोचूँ अगर मैं ख़ुद को तो कोई सिफ़त नहीं
देखूँ मगर मैं तुझमें है कुछ भी ग़लत नहीं

मेरा यक़ीन करना तेरे लफ़्ज़ लफ़्ज़ पर
ये इश्क़ है मेरा मेरी मासूमियत नहीं

फिर एक दिन तू मुझसे ख़फ़ा हो के चल दिया
कोई दुआ सलाम नहीं कोई ख़त नहीं

मुझको तबाह करके तेरे चेहरे की चमक
कुछ भी नहीं मलाल कोई माज़रत नहीं

हँसकर मनाना तुम मेरी बर्बादियों का जश्न
करना मेरे जनाज़े में कुछ ताज़ियत नहीं

तय कर गया मेरे लिए दोज़ख़ मेरा सनम
अब चाहिए ख़ुदा से मुझे आख़िरत नहीं

- Sanyam Bhatia
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