हमसे इस तरह वो ख़फ़ा क्यूँ है - Sanyam Bhatia

हमसे इस तरह वो ख़फ़ा क्यूँ है
पास होकर भी फ़ासला क्यूँ है

मस्ख़रा देखने मैं आया था
मेरे आगे ये आइना क्यूँ है

उखड़ा उखड़ा है आज क्यूँ महताब
रात का नूर गुमशुदा क्यूँ है

इक नज़र तुझको देखने वाला
दूसरी को उतावला क्यूँ है

पूछते हो कि मैं चला क्यूँ हूँ
तुम बताओ कि रास्ता क्यूँ है

तू निगाहों से ही पिलाया कर
शहर में तेरे मयक़दा क्यूँ है

- Sanyam Bhatia
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