मेरे किरदार में यूँ कोई गद्दारी नहीं आई

  - Satyavan Satya

मेरे किरदार में यूँ कोई गद्दारी नहीं आई
ज़माने की कभी जो मुझ में मक्कारी नहीं आई

मुझे आया न अपने दुश्मनों से भी दग़ा करना
उसे अपनों से भी करनी वफ़ादारी नहीं आई

मुझे ठुकरा दिया दुनिया ने भी अब इसलिए यारो
मुझे उन जैसी मतलब की कभी यारी नहीं आई

हुनर था ही नहीं मुझ में किसी की जी हुज़ूरी का
मेरे हिस्से किसी सूबे की सरदारी नहीं आई

हुई थी घोषणा मंचों से जो क्यों आज तक भी वो
किसी बुढ़िया के घर इमदाद सरकारी नहीं आई

किसी मासूम बच्चे सी रही है ज़िंदगी मेरी
ज़माने की कभी मुझ में समझदारी नहीं आई

सदा कायम रहा हूँ मैं मेरी सादा मिज़ाजी पर
मुझे पैकर परस्ती की अदाकारी नहीं आई

हक़ों के वास्ते हरदम रहा मैं 'सत्य' का साथी
सितमगर की कभी करनी तरफ़दारी नहीं आई

  - Satyavan Satya

More by Satyavan Satya

As you were reading Shayari by Satyavan Satya

Similar Writers

our suggestion based on Satyavan Satya

Similar Moods

As you were reading undefined Shayari