फिर से वो ही किस्से हैं फिर वही कहानी है
फिर से वो ही रंज-ओ-ग़म फिर वही तबाही है
ख़ाक फिर उड़ायेंगे बेख़ुदी में सहरा की
दिल में उसकी यादों का फिर से रक़्स ज़ारी है
ज़िन्दगी गुज़ार आए कर्ज़ भी उतार आए
मुझसे अब न पूछो के किस कदर गुज़ारी है
ख़ुल्द के तसव्वुर से दिल दहल सा जाता है
इस कदर जहन्नम से मेरी आश्नाई है
ता अबद सलासिल हीं पाँव का मुक़द्दर था
पाँव को बढ़ाते हीं मुँह की चोट खायी है
बाद-ए-दफ़्न भी मुझको रंज ये सताएगा
ज़िंदगी को किस फ़न से मैने याँ गवायी है
हाजत ए बयाबाँ भी लाज़मी नहीं उसको
मुद्दतों से घर जिसका आदमी से खाली है
लब-कुशाई में जोखिम बेशुमार हैं यारों
ख़ामुशी से ग़म झेलो इसमे ही भलाई है
और तो नहीं कुछ भी मेरे घर में पाओगे
कुछ हैं ग़म के सामां और एक दो रुबाई है
अब न ये जुदा होंगे जिस्म-ओ- जां से सारी उम्र
ख़त्म इन ग़मों की अब मुझपे ही रसाई है
तुम भी कब ज़रूरी थे मैं भी कब ज़रूरी था
देख लो फ़िराक़ अपना इसकी ही गवाही है
"हैफ़" का मुकद्दर भी "हैफ़" क्या मुकद्दर है
हादसे हैं ग़म है और दुख की बस कहानी है
हादसों ने किस दर्जा "हैफ़" को बदल डाला
ज़हन-ओ- दिल हुआ बूढ़ा जिस्म पे जवानी है
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