जो जीते जी न आए वो अज़ादारी को आएंगे
अभी कुछ लोग मदफ़न पे अदाकारी को आएंगे
मुझे ये रात में भी चैन से सोने नहीं देंगे
कुछ इक हैं ख़्वाब जो नींदों में ग़म-ख़्वारी को आएंगे
यक़ीं गर हो नहीं आवाज़ देकर के ज़रा देखो
मेरे पाले हुए ग़म हैं वफ़ादारी को आएंगे
लहू का एक भी कतरा मेरा ज़ाया नहीं होगा
हैं मुस्तक़बिल के ग़म बाकी जो ख़ूँ- ख़्वारी को आएंगे
इलाज-ए-ग़म ही बस करते मुझे तुमने यहाँ देखा
अभी तुम देखना कुछ लोग बीमारी को आएंगे
कहो झुठलाओगे कैसे मेरे अश्कों के सागर को
कयी दरिया हैं जो मेरी तरफ़दारी को आएंगे
हुदूद-ए- ग़म कहा क्या अब भी बाकी है, अभी कुछ लोग
हमारे बाद भी यानी ग़ज़ल कारी को आएंगे
मुझे बेबस करेंगे पहले वो मा'ज़ूर होने तक
वो ही फिर लेके बैसाखी मदद-गारी को आएंगे
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