0

हयात आधी मेरी गुज़री आज़माइश में  - Aman Kumar Shaw "Haif"

हयात आधी मेरी गुज़री आज़माइश में
बची जो आधी गुज़ारी है मैने गर्दिश में

दिखा के ज़ख्म सभी को हमे मिला ही क्या
हुए हैं रुस्वा सदा ज़ख़्मों की नुमाइश में

ग़ुबार-ओ-गर्द-ए-सफ़र की न थी बिसात कभी
बदन ये मैला हुआ मंज़िलों की ख़्वाहिश में

वो बुत परस्ती मेरी और इनायतें वो तेरी
कहाँ वो बात रही अब तेरी नवाज़िश में

उमीद छोड़ दी बीमार ने भी जीने की
न हीं वो बात रही अब तो उसकी पुर्सिश में

ये वहम-ए-रक़्स-ए-बदन बूंदों में जो है सच है
नहाती थी वो कभी साथ मेरे बारिश में

ऐ नस्ले नौ तू सबक ले मेरे तज़ुर्बों से
कि एक उम्र गुज़ारी है मैने गर्दिश में

मुसव्वीरी भी मेरी पुर असर न हो पायी
बिगड़ गयी मेरी तस्वीर ग़म की, लर्ज़िश में

सलीके से तो मुझे मौत भी नहीं आयी
ये जान मेरी गयी ख़ुदकुशी की कोशिश में

तमाम रात सलाख़ों को तकते गुज़री है
क़फ़स मिला था हमे ज़िन्दगी से बख़्शिश में

- Aman Kumar Shaw "Haif"

Manzil Shayari

Our suggestion based on your choice

More by Aman Kumar Shaw "Haif"

As you were reading Shayari by Aman Kumar Shaw "Haif"

Similar Writers

our suggestion based on Aman Kumar Shaw "Haif"

Similar Moods

As you were reading Manzil Shayari